भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी तलाश है वो रास्ता मिले मुझको / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी तलाश है वो रास्ता मिले मुझको
सुदूर है कहीं मंज़िल ,पता मिले मुझको

ज़िन्दगी का रहस्य जो मुझे बता पाये
कहीं, किसी का वो लिखा हुआ मिले मुझको

नियम नहीं है, गर यही है नियम तो पूछूँ
ये नियम जिस किसी ने भी रचा मिले मुझको

ये भी अन्याय है इक बार सोचकर देखो
मेरे पुरखों के किए की सज़ा मिले मुझको

वरना तो वक़्त बढ़ रहा फ़िज़ूल में अपना
कभी आये न मौत वो दवा मिले मुझको

ज़िन्दगी सिर्फ़ इक जुआ है और कुछ भी नहीं
रहा हूँ खेल कभी फ़ायदा मिले मुझको

वही रदीफ़, वही क़ाफ़िया, बहर कब तक
ग़ज़ल का फ़ैन हूँ मैं, कुछ नया मिले मुझको