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कट रही है ज़िन्दगी फुटपाथ पर / डी. एम. मिश्र
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कट रही है ज़िन्दगी फुटपाथ पर
ग़मगुसारो क्या कमी फुटपाथ पर
घर नहीं जिनके कहाँ जायें बेचारे
एक बस्ती बस गयी फुटपाथ पर
दिन कहीं मेहनत -मजूरी में कटा
रात फिर गुज़री किसी फुटपाथ पर
क्या ज़रुरत है दरी- गद्दे की जब
नींद अच्छी आ गयी फुटपाथ पर
ये उजाला आप पायेंगे कहाँ
खिलखिलाती चाँदनी फुटपाथ पर
हम कहाँ ढूँढें किराये का मकां
आशियाँ अपना फ्री फुटपाथ पर
हो रहा हूँ खुश बहुत, यह सोचकर
मेरे जैसा आदमी फुटपाथ पर