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तुम हो तो संसार सुहाना लगता है / डी. एम. मिश्र

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तुम हो तो संसार सुहाना लगता है
वरना गुलशन भी वीराना लगता है

वैसे तो तुम सिर्फ़ अकेले मेरे हो
किंतु तुम्हारा जग दीवाना लगता है

पूरे मन से कोशिश तो करते पहले
' सारी ' कहना सिर्फ़ बहाना लगता है

तुम हो मेरे साथ तो मैं कंगाल कहाँ
रूप तुम्हारा एक ख़ज़ाना लगता है

राजा रंक बराबर कैसे हो सकते
प्यार हमारा इक अफ़साना लगता है

कोई बात नहीं ये पल भी आने थे
आँसू उल्फ़त का नज़राना लगता है

हँसते- हँसते कैसे प्राण लुटा बैठा
मुझको वो कोई परवाना लगता है