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जीवन की गहराई मैंने मापी है / डी. एम. मिश्र

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जीवन की गहराई मैंने मापी है
मगर तलहटी छूना अब भी बाक़ी है

अंतर्मन की पीड़ा कौन समझ सकता
दरिया में रहकर भी मीन पियासी है

हँसते चेहरे लगते हैं फूलों जैसे
मुस्कानों के पीछे मगर उदासी है

ये संसार विचित्र बड़ा फिर ताज़्जुब क्या
 घर का भेदी मेरा अपना भाई है

दिखता है जो वह ही पूरा सत्य नहीं
मेरे पीछे भी मेरा इक माज़ी है

उस भोले पंछी की आँखें देखी हैं
शांत चित्त है फिर भी तेवर बाग़ी है

लड़ने की ताक़त है किसके पास नहीं
माना उस चींटी के आगे हाथी है