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फूल से पाँव में चुभे कांटे / डी. एम. मिश्र

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फूल से पाँव में चुभे काँटे
बेरहम कितने हो गये काँटे

कुछ थे छोटे तो कुछ बड़े काँटे
कुछ थे सूखे तो कुछ हरे काँटे

क्या कहें ऐसे जाहिलों को जो
साफ़ रस्ते में बो दिए काँटे

ज़िन्दगी रुक सी है गयी मेरी
राह में विघ्न बन गये काँटे

सिलसिला ख़त्म ही नहीं होता
और कितने अभी बचे काँटे

क्या बिगाड़ा था मैंने काँटों का
क्यों मेरे पाँव में चुभे काँटे