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कौन इस संसार में बेदाग़ है / डी. एम. मिश्र

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कौन इस संसार में बेदाग़ है
कल तलक 'राइट' था वो अब ' रांग ' है

यूँ तो तारीफ़ें भी करते लोग हैं
चाँद से चेहरे पे लेकिन दाग़ है

हाथ रखने की नहीं हिम्मत पड़े
दोस्तो ये बर्फ़ है या आग है

क्या नहीं करती है माँ मेरे लिए
पर वो ममता है कहाँ वो त्याग है

घर का ' मेम्बर ' तो नहीं वो बन गया
दूर रखिए वो विषैला नाग है

आप बस मेहमान तो बन जाइए
इस विदुर के दाल, रोटी, साग है

देश की दौलत तुम्हारी ही नहीं
हम ग़रीबों का भी इसमें भाग है