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दिल बचा ही कहाँ आप तोड़ेंगे जो / डी. एम. मिश्र

दिल बचा ही कहाँ आप तोड़ेंगे जो
घर में रक्खा ही क्या आप लूटेंगे जो ?

साख की फ़िक्र बेशक थी कल तक मगर
अब बची ही कहाँ है वो खोयेंगे जो?

ऐसे कितने दिवाने हैं आये यहाँ
आँसुओं की नदी में नहायेंगे जो

मेघ सबके हैं, यारो यकीं कीजिये
मेरे जलते शहर में भी बरसेंगे जो

कुछ खुदा के लिए भी मगर छोड़ दें
सब वही होगा क्या आप चाहेंगे जो?

यह हक़ीक़त है कोई कहावत नहीं
काटेंगे भी वही आप बोयेंगे जो

ज़िन्दगी भर जहन्नुम में जीते रहे
कोई पागल हैं जन्नत की सोचेंगे जो?