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कोई आये अभी और आग लगाये मुझको / अनीस अंसारी

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कोई आये अभी और आग लगाये मुझको
गीली लकड़ी की तरह फूंके, जलाये मुझको

याद आ जाते हैं सब अपने अधूरे क़िस्से
कोई परियों की कहानी न सुनाये मुझको

एक मुद्दत से नहीं पिघले जमी आंखों में अश्क
कोई चिन्गारी लगा दे जो रूलाये मुझ को

कोई कहता था मैं हंसता हूं तो प्यार आता है
बस उसी तरह कोई फिर से हंसाये मुझ को

जागती आँखें तरसती हैं हसीं ख्वाबों को
कोई सहलाये उन्हें और सुलाये मुझको