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कोई भी बात किसी से यहां नहीं करता / मेहर गेरा
Kavita Kosh से
कोई भी बात किसी से यहां नहीं करता
मैं गुफ़्तगू के मनाज़र कहां दिखाऊं तुझे
जो मैं कहूँ भी तो उस पर यक़ीन मत करना
ये मेरे बस में नहीं है कि भूल जाऊं तुझे
ग़ज़ल समझ के तराशूं तिरे कई पैकर
लतीफ गीत समझकर ही आज गाऊँ तुझे
हर एक बात तुम्हारी मिरे लिए सच है
मैं किसलिए तुझे परखूं क्यों आजमाऊँ तुझे।