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लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
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लम्हों का लम्स
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रचनाकार | मेहर गेरा |
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प्रकाशक | सारांश प्रकाशन |
वर्ष | 1996 |
भाषा | उर्दू |
विषय | शायरी |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 88 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ
- मशाहीर के इज़हारे-ख़याल / लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
- कितने पैकर ले गया कितने ही मंज़र ले गया / मेहर गेरा
- इक अक्से-दिल-पज़ीर तहे-आब देखना / मेहर गेरा
- जाना पहचाना हुआ मंज़र नज़र आने लगा / मेहर गेरा
- कभी तो फूल की रुत है कभी खिजां हूँ मैं / मेहर गेरा
- बदलती रुत का सितम सब पे एक जैसा था / मेहर गेरा
- मैं सुस्त गाम हूँ रस्ता मगर ज़ियादा नहीं / मेहर गेरा
- जिधर हवा हो उधर ही वो जा निकलता है / मेहर गेरा
- मैं हूँ बिखरा हुआ दीवार कहीं दर हूँ मैं / मेहर गेरा
- दूर तक मायूसियों की रेत है बिखरी हुई / मेहर गेरा
- उभर ही आता है अक्सर नये ग़मों की तरह / मेहर गेरा
- जी चाहता है अपना मुक़द्दर उतार दूँ / मेहर गेरा
- तेरी आवाज़ सुनूँगा मैं गजर की सूरत / मेहर गेरा
- हरेक सम्त ही पेड़ों पे थे हरे पत्ते / मेहर गेरा
- खुली हवा में ज़रा चंद गाम चल तो सही / मेहर गेरा
- दिल में फिर आग लगाती हैं चटकती कलियाँ / मेहर गेरा
- दिन ढलते ही जब हर छत से हर आंगन से चले उजाले / मेहर गेरा
- बिछुड़ गया जो इसी शहर में कभी मुझसे / मेहर गेरा
- फिरते हैं कुछ ग़ज़ाल फ़क़ीरों के आसपास / मेहर गेरा
- किस क़दर तेज़ है हवा बाबा / मेहर गेरा
- आंगन में रौशनी की झमक बेहिसाब है / मेहर गेरा
- मैं नहीं प्यार का मेयार गिराने वाला / मेहर गेरा
- जंगल में जिस तरफ भी गया, थे ग़मों के पेड़ / मेहर गेरा
- तेज़ चलते हैं हवाओं को पकड़ने वाले / मेहर गेरा
- प्यास की शिद्दत हो तो ऐसा हो सकता है / मेहर गेरा
- वक़्त की गर्द से, दिल में तेरी यादों के नकूश / मेहर गेरा
- किसी वजूद से बिछुड़ा हुआ लगे है मुझे / मेहर गेरा
- रातों की तन्हाई में यूँ सुनता हूँ तेरी आवाज़ें / मेहर गेरा
- मंज़िलें मत तलाश कर बाबा / मेहर गेरा
- रुतों के साथ तबीयत को भी बदलना है / मेहर गेरा
- सब इसे पहचान लेंगे तुम जहां ले जाओगे / मेहर गेरा
- गुज़र गई है किसी की तलाश में इक उम्र / मेहर गेरा
- कहां पे कौन सी शय है नहीं ये अंदाज़ा / मेहर गेरा
- हरेक गाम उसी को मैं हमसफ़र समझा / मेहर गेरा
- कुछ कहूँ उससे कुछ छुपा रक्खूं / मेहर गेरा
- ऐसे अंदाज़ से अक्सर नज़र आता है मुझे / मेहर गेरा
- भूलकर भी न सितमगर को सितमगर लिखना / मेहर गेरा
- जा-ब-जा प्यास के सहरा में भटकता क्या है / मेहर गेरा
- पहाड़ बर्फ का आखिर पिघलने वाला है / मेहर गेरा
- फिर एक इशारा-सा किस चीज़ का मज़हर है / मेहर गेरा
- दिलों के शहर में यह हादसा हुआ कैसे / मेहर गेरा
- हर बुलंदी से नज़र आई बुलंदी इक नई / मेहर गेरा
- कई बरस से यहां अजनबी रहा हूँ मैं / मेहर गेरा
- वो न जाने राह में किस मरहले पर रह गया / मेहर गेरा
- इतना बिगड़ा तो नहीं यारो मुक़द्दर मेरा / मेहर गेरा
- बेवजह वो यूँ मुझ पे इनायत करे है / मेहर गेरा
- मेरी आंखों में कभी अश्क़ जो भर आते हैं / मेहर गेरा
- रास्ता भर तू मेरे साथ रहा साथ चला / मेहर गेरा
- ख़तर-ए-बर्के-तपां गर नहीं काशानों में / मेहर गेरा
- बुत रवायात के जो ढाए हैं / मेहर गेरा
- हर कदम एक नया मोड़ नई सूरते-हाल / मेहर गेरा
- न दर्द उठता है दिल में न आह भरते हैं / मेहर गेरा
- ग़मे-ज़माना का जिसके भी दिल में चाव है / मेहर गेरा
- हैं अभी कुछ इधर उधर पत्ते / मेहर गेरा
- है सफ़र दर्द का तवील बहुत / मेहर गेरा
- रुज़हान उनका होने लगा है मिरी तरफ़ / मेहर गेरा
- तूफ़ाने-हवादिस में किसे किसकी ख़बर है / मेहर गेरा
- रुत बदलते ही हर इक सू मौजिज़े होने लगे / मेहर गेरा
- हमारे साथ तो इक चाल चल गया मौसम / मेहर गेरा
- आंगन में फिर वो सुब्ह का मौसम न आयेगा / मेहर गेरा
- इक मुलाकाते-हसीं को हादसा लिक्खा गया / मेहर गेरा
- हलचल सी मंच रही है बहुत आसमान में / मेहर गेरा
- हरिक भटकता हुआ कबसे दर-बदर क्यों है / मेहर गेरा
- कैसे कहें ज़बान पर पहरा कड़ा नहीं / मेहर गेरा
- झरने झीलें दरिया और समंदर तेरे / मेहर गेरा
- गहरे पानी में फिर उतर जाऊं / मेहर गेरा
- उसके हमराह सफ़र कर देखो / मेहर गेरा
- ये और बात मैंने किया है सफ़र बहुत / मेहर गेरा
- दस्तकें देकर बढ़ती है परेशानी हवा / मेहर गेरा
- हर कोई पूछेगा मुझसे मैं जिधर ले जाऊंगा / मेहर गेरा
- तमाज़तों से भरी रहगुज़र में छोड़ गया / मेहर गेरा
- चला हो साथ मिरे ये कभी हुआ भी नहीं / मेहर गेरा
- तिरे वजूद की ख़ुशबू का पैरहन पहना / मेहर गेरा
- आँधियों की ज़द में जितने भी थे घर जाते रहे / मेहर गेरा
- दीवारो-दर का ज़िक्र ही क्या घर बदल गये / मेहर गेरा
- साथ मिल जाये मुझे उनका अगर बारिश में / मेहर गेरा
- मुझको अब इनकी बुलंदी पर भी रश्क़ आता नहीं / मेहर गेरा
- गिला करें तेज़ पानियों का तो किस ज़बां से / मेहर गेरा
- कोई भी बात किसी से यहां नहीं करता / मेहर गेरा
- जो देखते हैं दूर से मौजों का तमाशा / मेहर गेरा
- ये अचानक हो गया हादसा इस शहर में / मेहर गेरा
- मुतफ़र्रिक अशआर / मेहर गेरा