भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तूफ़ाने-हवादिस में किसे किसकी ख़बर है / मेहर गेरा
Kavita Kosh से
तूफ़ाने-हवादिस में किसे किसकी ख़बर है
सैलाब में डूबा हुआ हर एक ही घर है
आसेब अंधेरों के डराएं मुझे लेकिन
उम्मीदे-सहर है, मुझे उम्मीदे-सहर है
जो देख नहीं सकता हदे-वक़्त से आगे
वो शख्स ब-हर तौर बड़ा तंगनज़र है
तू वुसअते-माहौल में छाया है कुछ ऐसे
हर रहगुज़र आज तिरी राहगुज़र है
क्यों ले के चलूं साथ मैं हंगामे सफ़र आज
इक याद है तेरी सो मिरा ज़ादे-सफ़र है
तक़लीद के इस दौर में दुश्वार है लेकिन
ऐ मेहर ज़माने से अलग अपनी डगर है।