दिलों के शहर में यह हादसा हुआ कैसे
हमारे ज़ेहन से वो नक़्श मिट गया कैसे
हरेक शाख़ ही तूफां-नवाज़ थी जिसकी
वो पेड़ लम्से-सबा से ही गिर गया कैसे
हरेक रंग जिसे ज़िन्दगी का प्यार था
वो शख्स ग़म के समंदर में डूबता कैसे
मैं पत्थरों की ज़ियारत को मेहर क्यों जाऊं
जो खुद -निगर न हों उंमो कहूँ ख़ुदा कैसे।