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किसी वजूद से बिछुड़ा हुआ लगे है मुझे / मेहर गेरा

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किसी वजूद से बिछुड़ा हुआ लगे है मुझे
हर इक किसी को यहां ढूंढता लगे है मुझे

क़दम क़दम पे यहां दिल ने चोट खाई है
तमाम ज़िन्दगी इक हादसा लगे है मुझे

मैं क्या बताऊं कि ऐजाज़े-फ़िक्र क्या शय है
तेरे ख़याल का इक सिलसिला लगे है मुझे

किसी में चेहरा मुक़म्मल नज़र नहीं आता
हरेक आइना टूटा हुआ लगे है मुझे

तिरी गली से जो गुज़रूँ तो हर दरीचे से
हरेक चेहरा ही कुछ पूछता लगे है मुझे

ऐ मेहर बीते हुए वक़्त के समंदर में
वो चांद जैसा बदन डूबता लगे है मुझे।