भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इक मुलाकाते-हसीं को हादसा लिक्खा गया / मेहर गेरा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
इक मुलाकाते-हसीं को हादसा लिक्खा गया
कैसे आलम में था मैं, मुझ से क्या लिक्खा गया

मसलहत क्या थी कि क्या लिखना था क्या लिक्खा गया
कुरबतों को भी यहां पर फासला लिक्खा गया

कर दिया फिर एक क़ातिल उसने बाइज़्ज़त रिहा
एक मुंसिफ से ये कैसा फैसला लिक्खा गया

रेत का घर लिख दिया दिलकश इमारत को यहां
ख़ूबसूरत शख्स को इक बुलबुला लिक्खा गया

मुल्क के जांबाज़ लोगों की बनी फेहरिस्त जब
सबसे ऊपर नाम इब्न-उल-वक़्त का लिक्खा गया

जिसके साये में गुज़ारी ज़िन्दगी की तेज़ धूप
किसलिए उस पेड़ को मुझसे जुदा लिक्खा गया

भूल सकता ही नहीं ऐ मेहर बारिश का सफ़र
जिसमें उसके साथ चलकर भीगना लिक्खा गया।