रुतों के साथ तबीयत को भी बदलना है
अगरचे संग हूँ, लेकिन मुझे पिघलना है
तुम्हारी याद से चारा कोई मफर का नहीं
पहाड़ बर्फ का है एक, जिसको जलना है
न जाने कितने ही ख़ुर्शीद रह गये पीछे
अभी है लम्बी मुसाफत अभी तो चलना है
पुरानी राह की आसूदगी है बार मुझे
कोई भी रुत हो मुझे रास्ता बदलना है
नये सफ़र के लिए नेक साअतें मत देख
हर इक घड़ी है मुबारक, तुझे जो चलना है
बस एक पेड़ के साये में बैठने का तरीक़
दुरुस्त है मगर ऐ मेहर इसे बदलना है।