भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आंगन में फिर वो सुब्ह का मौसम न आयेगा / मेहर गेरा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
आंगन में फिर वो सुब्ह का मौसम न आयेगा
सूरज के साथ फूल सा पैकर न आयेगा

साये में जिसके धूप से बचकर पनाह ली
क्या पेड़ मुझको याद वो अक्सर न आयेगा

मैं क्यों नदी से राज़ कहूँ ऊनी प्यास का
अब मेरे रास्ते में समंदर न आयेगा

वो पेड़ जिसपे फल कोई अब तक नहीं लगा
उस पेड़ पर कभी कोई पत्थर न आयेगा

इसको ही ज़िन्दगी की हक़ीक़त समझ के जी
ये वक़्त जब गया तो पलट कर न आयेगा।