रुज़हान उनका होने लगा है मिरी तरफ़
देखो ज़मीन मिलने लगे आसमान से
जिसने हर एक रंग दिया इसको, किसलिए
किरदार वो निकाल दिया दास्तान से
तन्हा-रवी के कर्ब का शिकवा है क्यों तुझे
अब तीर तो निकल ही गया है कमान से
तूफ़ान की गिरफ़्त में अक्सर रहा मगर
वो पेड़ आज भी है खड़ा अपनी शान से
जब ज़िन्दगी है मेहर मुसल्सल रवी का नाम
शाकी है किसलिए तू तूफ़ान की थकान से।