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मशाहीर के इज़हारे-ख़याल / लम्हों का लम्स / मेहर गेरा

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मज़हर इमाम

मेहर गेरा की शायरी नई ग़ज़ल के अंदाज़ व अदा का चित्रण करती है। वो अपने व्यक्तित्व के हवाले से जीवन के भेदों तथा प्रतीकों को परखने समझने की कोशिश करते हैं। इनकी शायरी ज़िन्दगी के वैभव से ज़ियादा इसके सौन्दर्य की तस्वीर है इसलिए इनका लहजा कहीं कर्कश नहीं होने पाता।


बशीर बद्र


एक प्रबुद्ध इंसान की तरह मेहर गेरा की ज़ेहन व सोच में अतीत की यादें, मौजूदा समस्याएं, भविष्य के ख़ूबसूरत ख़्वाब और शंकाएं अपने शेरी सांचे में ढलकर कुछ छुपते छुपते सामने आते हैं। मेहर गेरा की ग़ज़ल बेशक आज की ग़ज़ल है पुराने वैभव और आधुनिक मानसिकता की अत्यंत सुन्दर मिलन-क्षणिका।



आज़ाद गुलाटी

सफ़र और एहसासे सफ़र मेहर गेरा की वैचारिक परिधि की धूप छांव की रचना करते हैं और उनकी कला के अधिकतर आयाम किसी न किसी इन भावों से जुड़े हैं। इस समझ ने इन्हें ज़िन्दगी के सफ़र के उन मोड़ों पर भी ताज़ा व शगुफ्ता रखा है जहां सफ़र की थकान से एहसास दम तोड़ने लगता है।



राजेन्द्र नाथ रहबर

मेहर गेरा ने अपनी शायरी में परम्पराओं को भी ध्यान में रखा है और बहुत एहतियात से उन्हें नज़र अंदाज़ भी किया है। मेहर गेरा ज़मीन से और ज़मीन के वासियों से अपना नाता नहीं तोड़ते बल्कि धरती की ही बात करते हैं। उनकी कविता में सामूहिक और व्यक्तिगत एहसासात एकरूप होकर सामने आते हैं। उनका सौंदर्यबोध महज़ जिस्म तक और जिस्म से जुड़े सम्बन्धों तक सीमित नहीं है बल्कि वो रूह को रागो-रंग में समोने का फ़न ख़ूब जानते हैं।