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दीवारो-दर का ज़िक्र ही क्या घर बदल गये / मेहर गेरा
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दीवारो-दर का ज़िक्र ही क्या घर बदल गये
तुझसे बिछड़ के शहर के मंज़र बदल गये
वो अपने साथ वक़्त का एहसास ले गया
वो सुब्ह-शाम रोज़ो-शब वक आजकल गये
ये और बात है कि निशाना ख़ता हुआ
वरना कमान से तो कई तीर चल गये
कल शाम कुछ ज़ियादा ही सूरज उदास था
हर सिम्त शहर के सभी मंज़र बदल गये।