क्या रखता है अर्थ तुम्हारे लिए नाम मेरा?
डूबा हुआ उदासी में लहरों का विह्वल स्वर
कहीं दूर के तट पर जैसे जाता हहर, बिखर,
सूने वन में रात्रि समय ध्वनि खो जाती जैसे
मेरा नाम तुम्हारी स्मृति में मिटे कभी वैसे।
लिखें गए हों स्मृति के पट पर कुछ अक्षर
उस भाषा में जिसे समझना, पढ़ना हो दुष्कर,
उसी तरह से मुड़े-मुड़ाए, जर्जर काग़ज़ पर
चिन्ह नाम छोड़ेगा मेरा धुँधला-सा नश्वर।
क्या रखा है उसमें? जिसको विस्मृति ने निगला
नई भावना, नए प्यार का जब हो कुसुम खिला,
ला न सकेगा तेरे मन में वह स्मृतियाँ प्यारी
जल न सकेगी उससे कोमल, निर्मल चिंगारी।
किन्तु उदासी और व्यथा जब मन को आ घेरे
नाम याद कर लेना मेरा तुम धीरे-धीरे,
कहना ख़ुद से- याद किसी को मैं अब भी आती
किसी हृदय में मैं बसती हूँ, याद न मिट पाती।
रचनाकाल : 1830