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ख़िज़ाँ का, प्यास का, महरूमी−ए−बहार का दुख / अमित गोस्वामी

ख़िज़ाँ का, प्यास का, महरूमी−ए−बहार1 का दुख
अथाह रेत में फैला है रेगज़ार2 का दुख

दरीदा तन3 हूँ थकन से कि अब तो जाता रहा
क़बा−ए−चाक4−ओ−गिरेबान−ए−तार तार5 का दुख

मेरी ग़ज़ल की अलामत6 फ़क़त ये दो मिसरे
विसाल−ए−यार6 का इमकाँ7, फ़िराक़−ए−यार8 का दुख

अधूरी बाज़ी का इतना सा सुख तो है कि मुझे
किसी की जीत का ग़म है, न अपनी हार का दुख

है धड़कनों की जगह दिल में उसकी याद की चाप
बजाए नींद है आँखों में इंतज़ार का दुख



1. बहार से वंचित होना 2. रेगिस्तान 3. घायल बदन 4. फटा हुआ परिधान 5. फटा हुआ गिरेबान 5. पहचान 6. प्रिय से मिलन 7.कल्पना 8.प्रिय से जुदाई