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ख़ुदा को जितना वो जमा करता है / 'महताब' हैदर नक़वी
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ख़ुदा को जितना वो जमा करता है
उससे बढ़कर कहीं बिखरता है
आँसुओं की झड़ी लगी है यहाँ
कौन इस बाढ़ में ठहरता है
है हक़ीक़त भी दिल-फ़रेब बहुत
ख़्वाब का-सा ग़ुमाँ गुज़रता है
आसमानों से जिसका हो रिश्ता
वो ज़मीनों पे कब उतरता है
जाने वाले चले गये आख़िर
कौन किसके लिये ठहरता है