भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खाना- पीना, हंसी-ठिठोली , सारा कारोबार अलग / अशोक अंजुम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खाना- पीना, हंसी-ठिठोली , सारा कारोबार अलग !
जाने क्या-क्या कर देती है आँगन की दीवार अलग !

सारे भाई, मां-बापू भी कहने को संग रहते हैं
यूं तो सारे ही अपने हैं लेकिन है परिवार अलग!

पहले इक छत के ही नीचे कितने उत्सव होते थे,
सारी ख़ुशियाँ पता न था यूँ कर देगा बाज़ार अलग !

पत्नी, बहन, भाभियाँ, ताई, चाची, बुआ, मौसीजी
सारे रिश्ते एक तरफ़ हैं लेकिन माँ का प्यार अलग !

कैसे तेरे-मेरे रिश्ते को मंज़िल मिल सकती थी
कुछ तेरी रफ़्तार अलग थी, कुछ मेरी रफ़्तार अलग !

जाने कितनी देर तलक दिल बदहवास-सा रहता है
तेरे सब इकरार अलग हैं, लेकिन इक इनकार अलग !

अब पलटेंगे, अब पलटेंगे, जब-जब ऐसा सोचा है
'अंजुम जी' अपना अन्दाजा होता है हर बार अलग !