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खुद-ब-खुद हो गए, आकाश के सपनों से अलग / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
ख़ुद-ब-ख़ुद हो गए आकाश के सपनों से अलग
लोग,जिस दिन हुए, उड़ने के इरादों से अलग
मैं तो कहता हूँ -ये व्यापार है सीधा-सीधा
प्यार करना है तो हो जाइए शर्तों से अलग
आपने देखे नहीं लोगों के असली चेहरे
लोग हो जाते हैं जब अपने मुखौटों से अलग
भाव शब्दों में बसे रहते हैं प्राणों की तरह
शब्द को कर नहीं पाया कोई भावों से अलग
मुझको झीलों में भी आईने नज़र आते हैं
मुझको आईने भी लगते नहीं झीलों से अलग.