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खूब ख़ुशियाँ मिलीं न जीवन में / बाबा बैद्यनाथ झा

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खूब ख़ुशियाँ मिलीं न जीवन में।
एक दीवार देख आँगन में।

आजतक क्या नहीं किया मैने,
शर्म भी है उसे न कुछ मन में।

ज़िन्दगी सौंप दी उसे पूरी,
लुत्फ़ मैंने लिया न यौवन में।

आज भाई बना हुआ क़ातिल,
ढूँढता है मुझे कहीं वन में।

दंग है जान यह करम ‘बाबा’,
आग लगती न क्यों अभी तन में।