खूब ख़ुशियाँ मिलीं न जीवन में।
एक दीवार देख आँगन में।
आजतक क्या नहीं किया मैने,
शर्म भी है उसे न कुछ मन में।
ज़िन्दगी सौंप दी उसे पूरी,
लुत्फ़ मैंने लिया न यौवन में।
आज भाई बना हुआ क़ातिल,
ढूँढता है मुझे कहीं वन में।
दंग है जान यह करम ‘बाबा’,
आग लगती न क्यों अभी तन में।