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खेल समझे थे दिल लगाने को / सिया सचदेव
Kavita Kosh से
खेल समझे थे दिल लगाने को
अब तरसते हैं मुस्कुराने को
मुस्तयद है हँसी उड़ाने को
आग लग जाए इस ज़माने को
एक लम्हे में याद आती है
मुद्दतें चाहिये भुलाने को
आप महफ़िल सजाइये अपनी
हम है तैयार दिल जलाने को
जिनके अंदर हैं खामियाँ लाखों
ऐब आये मेरे गिनाने को