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भगवान्का वन-विहार
रागमलार
देखे राम पथिक नाचत मुदित मोर |
मानत मनहु सतड़ित ललित घन, धनु सुरधनु, गरजनि टँकोर ||
कँपे कलाप बर बरहि फिरावत, गावत कल कोकिल-किसोर |
जहँ जहँ प्रभु बिचरत, तहँ तहँ सुख, दण्डकबन कौतुक न थोर ||
सघन छाँह-तम रुचिर रजनि भ्रम, बदन-चन्द चितवत चकोर |
तुलसी मुनि खग-मृगनि सराहत, भए हैं सुकृत सब इन्हकी ओर ||