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गीतावली अरण्यकाण्ड पद 1 से 5/पृष्ठ 2
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(2).
रागकल्याण
सुभग सरासन सायक जोरे |
खेलत राम फिरत मृगया बन, बसति सो मृदु मूरति मन मोरे ||
पीत बसन कटि, चारु चारि सर, चलत कोटि नट सो तृन तोरे |
स्यामल तनु स्रम-कन राजत, ज्यों नव घन सुधा-सरोवर खोरे ||
ललित कन्ध, बर भुज, बिसाल उर, लेहिं कण्ठ-रेखैं चित चोरे |
अवलोकत मुख देत परम सुख, लेत सरद-ससिकी छबि छोरे ||
जटा मुकुट सिर, सारस-नयननि गौहैं तकत सुभौंह सकोरे |
सोभा अमित समाति न कानन, उमगि चली चहुँ दिसि मिति फोरे ||
चितवत चकित कुरङ्ग-कुरङ्गिनि, सब भए मगन मदनके भोरे |
तुलसिदास प्रभु बान न मोचत, सहज सुभाय प्रेमबस थोरे ||