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गीतावली / तुलसीदास / पृष्ठ 24

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किष्किन्धाकाण्ड आरंभ
ऋष्यमूकपर राम

भूषन बसन बिलोकत सियके।
प््रेाम-बिबस मन,कंप पुलक तनु, नीरजनयन नीर भरे पियके।1।

स्कुचत कहत, सुमिरि उर उमगत, सील सनेह सुगुनगन तियके।
स्वामि दसा लखि लषन सखा कपि , पिघले हैं आँच माठ मानो घियके। 2

सोचत हानि मानि मन गुनि गुनि गये निघटि फल सकल सुकियके।
वरने जामवंत तेहि अवसर बचन बिबेक बीररस बियके।3।।

 धीर बीर सुनि समुझि परसपर, बल-उपाय उघटत निज हियके।
तुलसिदास यह समउ कहेतें कबि लागत निपट निठुर जड़ जियके।4।