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गीत ऐसा कि जैसे कमल चाहिये / रामप्रसाद शर्मा "महर्षि"

गीत ऐसा कि जैसे कमल चाहिये
उसपे भँवरों का मंडराता दल चाहिये

एक दरिया है नग़्मों का बहता हुआ
उसके साहिल पे शामे-ग़ज़ल चाहिये

जिसको जी भर के हम जी सकें,वो हमें
शोख़, चंचल, मचलता-सा पल चाहिये

और किस रोग की है दवा शाइरी
कुछ तो मेरी उदासी का हल चाहिये

ख़ैर, दो-चार ही की न ‘महरिष’ हमें
हम को सारे जहाँ की कुशल चाहिये.