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गोद / शरद कोकास

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गोरी चमड़ी वालों के देश से आई औरत की नीली आँखों में
टेम्स का पनीलापन दया भाव में झलकता था
उसके क़द के आगे शर्मिन्दा था हिमाला
स्वर्ण से चमकते उसकी त्वचा के रोयें पूरब की धूप में
पश्चिम में डूबते सूरज की लालिमा लिए बालों और
कोल्ड्रिंक, विदेशी सिगरेट और गॉगल्स के साथ
योरप का विज्ञापन बनी फिरती थी वह
य़कीन नहीं होता था वह इसी दुयिा की औरत है
जिसे इन दिनों गाँव कहने का चलन है

किसी लुप्तप्राय प्रजाति की तरह बचे हुए थे बूढ़े
जिनकी स्मृतियों में दर्ज़ था एक सदी पुराना दक्षिण अफ्रीका
गांधी बाबा को सामान सहित प्लेटफॉर्म पर फेंके जाने का हादसा
अपमान की आग से फीनिक्स की तरह जन्म लेता आन्दोलन
वहीं इतिहास को ब्रेक के दौरान जानने वाली पीढ़ी मौजूद थी
जो पिछले दिनों एक अश्वेत कन्या द्वारा
विश्वसुन्दरी का ताज पहने जाने की ख़बर से अभिभूत थी

जिस देश की आधी से अधिक आबादी के जींस में
साँवलेपन का गुण प्रमुखता से मौजूद हो
जहाँ गोरा बनाने वाली क्रीम खू़ब बिकती हो
जहाँ शादी के विज्ञापन में लड़की का रंग लिखना अनिवार्य हो
वहाँ इस बात में क्या आश्चर्य कि
देश की महिला आई.ए.एस. अधिकारियों से खौफ़ खाने वाली
आदिम जाति कल्याण विभाग की क्लर्क कुमारी निशा टोप्पो
उस औरत के पास खड़े रहकर आत्मग्लानि में डूब-उतरा रही थी
काले नंग-धड़ंग बच्चों के लिए सोनपरी थी वह
नौजवानों के लिए पर्दे से बाहर निकल आई
अंग्रेज़ी फिल्मों की नायिका
अपने जैसी औरत को स्कर्ट पहने देख हँस रही थी गाँव की औरतें

व्यक्तित्व से अभिभूत होने के इस दौर में
पिछली सदी के मध्य गु़लामी ख़त्म हो जाने का गुमान था
कि अचानक पर्चे बँटे गुलाल उड़ा तालियाँ बजीं
हवाओं में गूंजा एक ऐलान
मैडम यह गाँव गोद लेना चाहती हैं
बनाना चाहती हैं इसे अपने सपनों का गाँव

अगले ही क्षण कीचड़ में सना टेटकू परी की गोद में था
दुनिया भर की चालाकियों से नावाकिफ़ गाँव वालों के लिए
गोद लेने का यही एक स्थूल अर्थ था

हवाओं ने यह ऐलान तितलियों तक पहुँचाया
तितलियों ने पहुँचाया जंगलों तक
इधर सकते में आ गए बादल और रोने लगे
गड़गड़ाहट में गुम हो गए
र्व्ल्ड बैंक आई.एम.एफ. जेसे अगड़म-बगड़म शब्द

-2002