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ग्रहण लागलोॅ चन्दा छै / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

ग्रहण लागलोॅ चन्दा छै
ई गर्दन लेॅ फन्दा छै।

गोड़ संभाली केॅ ही रखियो
आगू-आगू खन्दा छै।

लोकतंत्र केॅ डुबलै समझोॅ
नीति-नियम जे गन्दा छै।

नीचेॅ सेॅ लै केॅ ऊपर तक
काला धन के धन्धा छै।

जान लिबैया तोरोॅ बोली
लकड़ी पर जयों रन्दा छै।

सौ खूनोॅ के केस चलै छै
तहियो नै शर्मिन्दा छै।

सारस्वतोॅ के वाणी ही तेॅ
गुग्गुल-रजनीगंधा छै।