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घोँघन मे बसिके न मिलै रस जे मुकतान पे चोँच चलैया / अज्ञात कवि (रीतिकाल)

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घोँघन मे बसिके न मिलै रस जे मुकतान पे चोँच चलैया ।
मालती की लतिका तजि कै केहि काम करील की कोटि कनैया ।
श्री महराज सरोवर हौ हम हंस हमेस यहाँ के बसैया ।
कोटिन काल कराल परै पै मराल न ताकिहैँ तुच्छ तलैया ।


रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।