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चलो, सोने चलते हैं / मुइसेर येनिया
Kavita Kosh से
चलो, सोने चलते हैं
उस तन्हा अँधेरे में
अच्छा हो कि पैर में पड़े लकड़ी के जूते
सूती वस्त्र में बदल जाएँ
चलो, सोने चलते हैं
उस बन्द पलकों वाले महल में
चलो, अपने कन्धों से उतारें अपनी देह
चलो, उस घोड़े पर सवार हो जाएँ
जिसकी पूँछ एक बादल है
जैसे हम पराजित हो चुके हों
आसमान की चमक से
जैसे हमारे पास कोई सिरहाना न हो
सिवा धरती के
अच्छा हो कि गेंहू की हरितमा
हमारे सपनों पर झुक जाए
चलो, सोने चलते हैं ।