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चिड़िया रानी / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
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चिड़िया रानी फुदक-फुदक कर,
मीठा राग सुनाती हो ।
आनन-फानन में उड़ करके,
आसमान तक जाती हो ।।
मेरे अगर पंख होते तो,
मैं भी नभ तक हो आता ।
पेड़ो के ऊपर जा करके,
ताज़े-मीठे फल खाता ।।
जब मन करता मैं उड़ कर के,
नानी जी के घर जाता ।
आसमान में कलाबाज़ियाँ कर के,
सबको दिखलाता ।।
सूरज उगने से पहले तुम,
नित्य-प्रति उठ जाती हो ।
चीं-चीं, चूँ-चूँ वाले स्वर से ,
मुझको रोज़ जगाती हो ।।
तुम मुझको सन्देशा देती,
रोज सवेरे उठा करो ।
अपनी पुस्तक को ले करके,
पढ़ने में नित जुटा करो ।।
चिड़िया रानी बड़ी सयानी,
कितनी मेहनत करती हो ।
एक-एक दाना बीन-बीन कर,
पेट हमेशा भरती हो ।।
अपने कामों से मेहनत का,
पथ हमको दिखलाती हो ।
जीवन श्रम के लिए बना है,
सीख यही सिखलाती हो ।।