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जब हम तुम मिले-2 / वेणु गोपाल

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जब हम-तुम मिले
तो बातें बहुत थीं-- जो हमने नहीं कीं-- न करेंगे
काम भी
एक दूसरे को एक दूसरे से
कई थे-- जो हमेशा ही रहते हैं--
और जो हमेशा ही नहीं किए जाते।

कामों और बातों के परे हम
एक माध्यम में ढलकर रह गए थे--
कि हमारे ज़रिए एक ख़ामोश संगीत
बजने लगा था-- और हम देखते न देखते
आकाश के खुलेपन के माता-पिता थे

उसके बाद
हमारी गोदी में
खेलता बच्चा ही सहारा था-- हमारे लिए
एक-दूसरे के पास पहुँचने
और एक-दूसरे को पाने का।