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जय महाराज ब्रजराज-कुल-तिलक / गदाधर भट्ट

जय महाराज ब्रजराज-कुल-तिलक
गोबिंद गोपीजनानंद राधारमन।
नंद-नृप-गेहिनी गर्भ आकर रतन
सिष्टद-कष्टगद धृष्टभ दुष्ट। दानव-दमन॥१॥

बल-दलन-गर्व-पर्वत-बिदारन
ब्रज-भक्त-रच्छा-दच्छ गिरिराजधर धीर।
बिबिध बेला कुसल मुसलधर संग लै
चारु चरणांक चित तरनि तनया तीर॥२॥

कोटि कंदर्प दर्पापहर लावन्य धन्य
बृंदारन्य भूषन मधुर तरु।
मुरलिकानाद पियूषनि महानंदन
बिदित सकल ब्रह्म रुद्रादि सुरकरु॥३॥

गदाधरबिषै बृष्टि करुना दृष्टिछ करु
दीनको त्रिविध संताप ताप तवन।
मैं सुनी तुव कृपा कृपन जन-गामिनी
बहुरि पैहै कहा मो बराबर कवन॥४॥