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जवानी पैंचा नै लेबै / रामदेव भावुक
Kavita Kosh से
लिखलाका मेटाय देवै, अपना लिलार के
ठूठ पाखड़ के किरिया, पकबा इनार के
बरगबिहीन मजुरबा के राज हो
बनैबै शोषण से मुक्त समाज हो
जवानी पैंचा नै लेबै, जिनगी उधार के
अब ने मलिकबा के दागबै सलाम हो
जोर-जुलुम के मुँह में लगैबै लगाम हो
चलतै ने हिटलरशाही, जोर कुछ जार के
जलैबै संघर्ष से संघर्ष के मशाल हो
समाजवाद लैबै हम मिटैबै पूँजीवाद हो
राति हम खुशी के लैबै, दिनमा बहार के
घरबा मे कहि देलिऐ मुनमा के माय के
मुनियां के दिनमां अबकी रखिहॅ गुनाय के
ब्याह रचाय देबै सपना कुमार के