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जाड़ा / अमरेन्द्र
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दलदल दलकै हमरोॅ हाड़
सुइये रं चूभै छै जाड़
कँपकँप काँपै दोनों ठोर
कस्सी बान्हलौं गाँती जोर
ओढ़ना ओढ़ोॅ वही रजाय
बुतरु वास्तें जाड़ कसाय
कनकन्नोॅ राते रं भोर
गुरुओ जी सें जाड़ कठोर
रौदा उगै नै, खेलौं खेल
बुतरु वास्तें जाड़ा जेल
गल्लोॅ जाय छै हमरोॅ हाड़
कहिया जैभा तोहें जाड़ ?