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जीने का हिसाब लिख रहा हूँ / 'महताब' हैदर नक़वी

जीने का हिसाब लिख रहा हूं
दरिया को सराब लिख रहा हूँ
 
ये शहर है कितने सूरजो का
चेहरे पर गुलाब लिख रहा हूँ
 
आँखों के चिराग़ जल रहे हैं
यादों का निसाब लिख रहा हूँ
 
जैसे वह उतर रहा है दिल में
उल्फ़त की किताब लिख रहा हूँ