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जो पीने में ज़्यादा या कम देखते हैं / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
जो पीने में ज़्यादा या कम देखते हैं
वे अपने ही मन का वहम देखते हैं
हमें देखते देख शरमा गये वे
नहीं यों किसीका भरम देखते हैं
किसीने हँसी में न कुछ कह दिया हो!
इधर आजकल उनको कम देखते हैं
कहीं चोट सीने में गहरी लगी है
हम आज उनकी आँखें भी नम देखते हैं
यहीं छोड़ दें बात बीते दिनों की
न तुम उनको देखो, न हम देखते हैं
गुलाब! इन पँखुरियों को छितरा रहे वे
कलाई में कितना है दम, देखते हैं