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डोलि रहे बिकसे तरु एकै / शृंगार-लतिका / द्विज

किरीट सवैया
(पुनः ऋतुपति आगमन-वर्णन)

डोलि रहे बिकसे तरु एकै, सु एकै रहे हैं नवाइ कैं सीसहिं ।
त्यौं द्विजदेव मरंद के ब्याज सौं, एकै अनंद के आँसू बरीसहिं ॥
कौंन कहै उपमा तिनकी जे लहैंईं सबै बिधि संपति दीसहिं ।
तैंसैंईं ह्वै अनुराग-भरे कर-पल्लव जोरि कैं एकै असीसहिं ॥२७॥