भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डोलि रहे बिकसे तरु एकै / शृंगार-लतिका / द्विज
Kavita Kosh से
किरीट सवैया
(पुनः ऋतुपति आगमन-वर्णन)
डोलि रहे बिकसे तरु एकै, सु एकै रहे हैं नवाइ कैं सीसहिं ।
त्यौं द्विजदेव मरंद के ब्याज सौं, एकै अनंद के आँसू बरीसहिं ॥
कौंन कहै उपमा तिनकी जे लहैंईं सबै बिधि संपति दीसहिं ।
तैंसैंईं ह्वै अनुराग-भरे कर-पल्लव जोरि कैं एकै असीसहिं ॥२७॥