- नागर से हैं खरे तरु कोऊ / शृंगार-लतिका / द्विज
 - डोलि रहे बिकसे तरु एकै / शृंगार-लतिका / द्विज
 - मिलि माधवी आदिक फूल के ब्याज / शृंगार-लतिका / द्विज
 - पाँखुरी लै साजी सेज सेवती की बेलिन / शृंगार-लतिका / द्विज
 - औंरैं भाँति कोकिल, चकोर ठौर-ठौर बोले / शृंगार-लतिका / द्विज
 - मंद दुचंद भए बुध-बैनहिं / शृंगार-लतिका / द्विज
 - देखत हीं बन फूले पलास / शृंगार-लतिका / द्विज
 - नख सौं भुँअ खोदत कोद चहूँ / शृंगार-लतिका / द्विज
 - फूले घने, घने-कुंजन माँहिं / शृंगार-लतिका / द्विज
 - ऐसैं बिचारत हीं मति मेरी / शृंगार-लतिका / द्विज