भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नख सौं भुँअ खोदत कोद चहूँ / शृंगार-लतिका / द्विज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुर्मिला सवैया
(चिंता-वर्णन)

नख सौं भुँअ खोदत कोद चहूँ, अवलोकत हूँ नहिं जानि परैं ।
कर कौ अवलंब कपोलन दै, भुज के अवलंब कौं जानु धरैं ॥
इहिं भाँति सौं मौन ह्वै बैठौ घरीक, सु जाइ कैं काहू तमाल-तरैं ।
तन और के जीव सजीव मनौं, मन मानहुँ और की देह धरैं ॥३३॥