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शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 2
Kavita Kosh से
- बायु बहारि-बहारि रहे छिति, बीथीं सुगंधनि जातीं सिँचाई / शृंगार-लतिका / द्विज
- बंदनवार बँधे सब कैं, सब फूल की मालन छाजि रहे हैं / शृंगार-लतिका / द्विज
- जानि-जानि आपने ही गेह कौ अराम / शृंगार-लतिका / द्विज
- या बिधि की सोभा निरखि / शृंगार-लतिका / द्विज
- चँहकि चकोर उठे, सोर करि भौंर उठे / शृंगार-लतिका / द्विज
- हौंन लागे सोर चहुँ ओर प्रति कुंजन मैं / शृंगार-लतिका / द्विज
- सबै फूल फूले, फबे चारु सोहैं / शृंगार-लतिका / द्विज
- रमैं पच्छिनी सौं सबै पच्छ जोरैं / शृंगार-लतिका / द्विज
- कहूँ कोकिलाली, कहूँ कै पुकारैं / शृंगार-लतिका / द्विज
- कहूँ कोक हूँ कोक की कारिका कौं / शृंगार-लतिका / द्विज
- कदंब प्रसूनन सौं सरसात / शृंगार-लतिका / द्विज
- नहीं नव अंकुर ए सरसात / शृंगार-लतिका / द्विज
- पलास-प्रसून किधौं नख-दाग / शृंगार-लतिका / द्विज
- रचे बितान से घने, निकुंज-पुंज सोहईं / शृंगार-लतिका / द्विज
- कहूँ-कहूँ बनीं-ठनीं, लसैं सु बापिका घनी / शृंगार-लतिका / द्विज