भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चँहकि चकोर उठे, सोर करि भौंर उठे / शृंगार-लतिका / द्विज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मनहरन घनाक्षरी
(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)

चहँकि चकोर उठे, सोर करि भौंर उठे, बोलि ठौर-ठौर उठे कोकिल सुहावने ।
खिलि उठीं एकै बार कलिका अपार, हलि-हलि उठे मारुत सुगंध सरसावने ॥
पलक न लागी अनुरागी इन नैननि पैं पलटि गए धौं कबै तरु मन-भाँवने ।
उँमगि अनंद अँसुवान लौं चहूँघाँ लागे, फूलि-फूलि सुमन मरंद बरसावने ॥१५॥