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नहीं नव अंकुर ए सरसात / शृंगार-लतिका / द्विज
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मौक्तिकदाम
(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)
नहीं नव अंकुर ए सरसात । धरयौ छिति हूँ कछु कंटक गात ॥
रहे नहिँ ओस के बुंद बिराजि । प्रसेद के बिंदु रही छिति छाजि ॥२२॥