नाराच
(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)
रचे बितान से घने, निकुंज-पुंज सोहईं । प्रभा-निहारि हारि, हारि, चित्त-बृत्ति मोहईं ॥
समीर मंद मंद डोलि, द्वार पैं निकुंज के । पसारि पाँवड़े रहे, चहूँ प्रसूण-पुंज के ॥२४॥
नाराच
(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)
रचे बितान से घने, निकुंज-पुंज सोहईं । प्रभा-निहारि हारि, हारि, चित्त-बृत्ति मोहईं ॥
समीर मंद मंद डोलि, द्वार पैं निकुंज के । पसारि पाँवड़े रहे, चहूँ प्रसूण-पुंज के ॥२४॥