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मंद दुचंद भए बुध-बैनहिं / शृंगार-लतिका / द्विज

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किरीट सवैया
(ऋतुराज की स्तुति-वर्णन)

मंद दुचंद भए बुध-बैनहिं, भाँखि सकैं कबि हूँ कबितान न ।
आइ लजाइ चलेई गए गुरु, आपनौं सौ लिऐं आपनौं आनन ॥
कौंन प्रभा करतार! बखानिहैं, मंगल-खाँनि बिलोकि कै कानन ।
सीस हजार हजार करैं, पैं न पार लहैंगे हजार जुबानन ॥३१॥