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डोॅर लगै छै नीनोॅ मेॅ / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'
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डोॅर लगै छै नीनोॅ मेॅ
रात कहाँ ऊ पैलोॅ जाय।
छप्पर तेॅ उड़ले ही छेलै
दीवारोॅ तक ढैलोॅ जाय।
बूंद-बूंद लेॅ तरसै सब्भे
सावन यहाँ मतैलोॅ जाय।
घाटे गन्दा हुवेॅ नै खाली
कोय कचड़ा नै पैलोॅ जाय।
कोय कारण सेॅ नै टूटेॅ जे
रिश्ता वहा निभैलोॅ जाय।
सारस्वते खाली भुखलोॅ
सब तेॅ यहाँ अघैलोॅ जाय।